कुंवर अजय सिंह विधि महाविद्यालय, ललऊ खेड़ा (डीह)उन्नाव-बाईपास से लगभग 02 किमी0 की दूरी पर अचलगंज मार्ग में स्थित विधि का प्रथम महाविद्यालय प्रचार प्रसार में उन्नाव जिले में अग्रणी है। कानपुर विश्वविद्यालय में विशेष दर्जा प्राप्त कुॅवर अजय सिंह विधि महाविद्यालय अपने सृजनकर्ता ट्रस्टी श्रीमती सुमन सिंह जी एवं संरक्षक कुॅवर अजय सिंह जी की गोद में नवनिहाल है प्रौढ़ता को प्राप्त हो रहा है। उन्नाव की धरती शूरवीरों एवं साहित्य कला महारथियों के जन्म की साक्षी है। विधि की ज्ञान गंगा को भागीरथ के रूप में लाने वाले अजय सिंह द्वारा स्थापित कुॅवर अजय सिंह विधि महाविद्यालय, ललऊ खेड़ा (डीह), उन्नाव छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर से सम्बद्ध तथा बार काॅउन्सिल ऑफ़ इण्डिया से अनुमोदित विधि महाविद्यालय में अनुभव प्राप्त शिक्षकों की उपस्थिति एवं अनगढ़े, विकृत स्वभाव वाले समर्पित विद्यार्थियों को विधि ज्ञान से गढ़कर तराशा जाता है। विधि की प्रवाहित इस निर्मल धारा में तराशे हुये अनगढ़ पत्थर समाज की विभिन्न विधाओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन एवं उच्च पदों पर आसीन हैं तथा भविष्य में भी होते रहेंगे। शिक्षकों से आशीर्वाद प्राप्त कर एकलव्य की भांति कीर्तिमान हाॅसिल करते रहेंगे। विधि महाविद्यालय शिक्षा के गुणात्मक "बहुमुखी विकास" का एक सराहनीय प्रयास करने जा रहा है। संस्थान के निरंतर विकास की संकल्पना का प्रयास महाविद्यालय परिवार का परम कर्तव्य एवं दायित्व है। समाज की प्रथम ईकाई ‘‘व्यक्ति’’ की मुख्य आवश्यकता शिक्षा, सुरक्षा एवं अर्थ को ध्यान में रखते हुये इस पाठ्यक्रम का आयोजन नई पीढ़ी को प्रदान किया गया। विधि मानव की गरिमा का मार्ग प्रशस्त करता है। विधि सम्राटों का सम्राट है। यह हमेशा एक निश्चित रूप में नहीं रहता। न्याय प्रदान करने के लिये समय, परिस्थिति एवं समस्याओं के अनुरूप परिवर्तनशील है क्योंकि विधि न्याय के लिये बनायी जाती है। मनुष्य की गरिमा तभी साकार होगी जब समाज में समानता एवं बंधुत्व की भावना होगी जोकि विधि की शिक्षा एवं ज्ञान से ही संभव है। इस प्रकार की शिक्षा प्रणाली का विकास करना जिसके द्वारा ऐसी युवा पीढ़ी का निर्माण हो सके जो राष्ट्र भक्ति से प्रेरित हो, शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक दृष्टि से पूर्ण विकसित हो जिससे जीवन की वर्तमान चुनौतियों का सामना सफलतापूर्वक किया जा सके और मानव जीवन ग्रामीण, झुग्गी-झोपड़ियों में निवास करने वाले दीन-हीन, अभाव ग्रस्त बंधु-बांधवों का सामाजिक, आर्थिक, मानसिक कुरीतियों से शोषण एवं अन्याय से मुक्ति प्रदान कर राष्ट्र जीवन को समरस, सुसभ्य एवं सुसंस्कृत बनाया जा सके।
‘‘प्रकृत’’ शब्द का अर्थ है पहले से या आरम्भ से ही उपस्थित अथवा जन्म के साथ। प्रकृत गुणों और लक्षणों के समुच्चय को हम प्रकृति कह सकते हैं। किसी भी वस्तु की ‘‘प्रकृति’’ उसके मौलिक गुणों, व्यवहारों आदि से बनती है। मनुष्य के पूरे अकृत्रिम पर्यावरण को हम प्रकृति कहते हैं। इसमें नदी, पहाड़, हवा, झरने, हरियाली आदि सभी सम्मिलित हैं।प्रकृति ने मनुष्य को सुख और दुःख के साम्राज्य में स्थित किया है। हमारे सारे विचार उन्हीं से निकलते हैं, हम अपने निर्णय और अपने जीवन के सारे संकल्प उन्हीं से जोड़ते हैं जो अपने को उनकी अधीनता से दूर रखने की बात कहता है वह यह नहीं जनता कि वह क्या कह रहा है। ये शाश्वत और अनिवार्य भावनायें नैतिकतावादी और विधायक के अध्ययन की बड़ी वस्तु होनी चाहिये। उपयोगिता का सिद्धान्त प्रत्येक वस्तु को इन दो हेतुओं (आशय) के अधीन है। विधि का प्रयोजन सुख को लाना और दुःख को दूर करना है। सुख और दुःख वे अन्तिम मानदण्ड हैं जिसके ऊपर विधि का उसके अच्छे या बुरे होने का निर्णय किया जाना है। न्याय और नैतिकता की सारी बातों को इस दृष्टिकोण में कोई स्थान नहीं है। बेंथम के अनुसार,‘‘ निष्ठा से पालन करो और स्वतन्त्रता से "आलोचना करो’’|विधि मनुष्य के स्वच्छन्द जीवन को अनुशासित रखती है। निःसंदेह किसी भी देश की विधि पर वहां की सामाजिक तथा आर्थिक परिस्थितियों का गहरा प्रभाव पड़ता है। परिणामस्वरूप विधि में समयानुसार संशोधन करना आवश्यक हो जाता है। अनेक विद्वानों ने विधि को समाज का दर्पण कहा है अर्थात् किसी स्थान-विशेष की विधि में वहां की सामाजिक परिस्थितियों की झलक स्पष्ट रूप से दिखलाई देती है।
संस्थापक पिता की उदात्त दृष्टि हमेशा उन सभी कार्यक्रमों में परिलक्षित होती है जो संस्थान में किये हैं। सुदूर ग्रामीण आधार पर समाज के वंचितों और हासिये पर रहने वाले लोगों तक पहुंचने के लिये जिन्हें उनकी दुर्बलता और अज्ञानता के कारण लगातार शोषित है महाविद्यालय द्वारा सर्वेक्षण कर उन ग्रामीण लोगों को प्रबुद्ध करने और मजबूत करने के लिये विधिक शिक्षा से संबंधित कार्यक्रमों को संपादित किया जाता है। इन विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से विद्यार्थियों में सामाजिक प्रतिबद्धता और न्याय की भावना के साथ जिम्मेदार नागरिक बनने के लिये अपने समग्र व्यक्तित्व को विकसित करने के लिये प्रशिक्षित किया जाता है।
इस महाविद्यालय की स्थापना इस विश्वास के साथ की गयी है कि वह सत्य के साक्षात्कार के लिये प्रयत्नशील समाज के व्यक्तियों को विधि की शक्ति प्रदान करे साथ ही इस विश्वास के साथ समाज के व्यक्तियों में आत्मविश्वास और योग्यतायें उत्पन्न कर प्रेरणा प्रदान करे कि वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सके। महाविद्यालय विधि के क्षेत्र में नित नये आयाम प्राप्त कर जनपद का विधि के क्षेत्र में उत्कृष्ट स्थान प्राप्त करने की ओर अग्रणी है।